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देश के राजनेताओं ने देश को लूटकर खोखला कर दिया: शाहाबादी



  • कभी हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था, और इस देश को सोने की चिड़िया बनाने में अनेकों राजा महाराजा व सम्राटों का विशेष योगदान था।
    फिर विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने आकर हमारे देश को लुटा, मुगलों ने लुटा, फ्रांसीसी, डच, पुर्तगाली और अंग्रेजो ने लुटा। पर जितना 800 सालों में मुस्लिम आक्रांताओं और 300 सालों तक फ्रांसीसी, डच, पुर्तगाली और अंग्रेजो ने नहीं लुटा उससे अधिक देश की आजादी के बाद संवैधानिक सरकार के राजनेताओं ने लूट लूट कर देश को खोखला कर दिया, अपना तिजोरी भरते रहे और देश पर लगातार कर्ज बढ़ता रहा, देश के लोग गरीब होते गए। आज आलम यह हैं कि देश के प्रत्येक नागरिकों पर लाखों रूपये का विदेश कर्ज हैं जिसकों देश की आम जनता जानती भी नहीं। आज देश की और देश के नागरिकों की स्थिति यह हो गई हैं कि करीब 80 करोड़ लोग सरकार द्वारा फ्री राशन से जी रहे हैं। उक्त बातें जनशक्ति संगठन के संयोजक सह राष्ट्रीय अध्यक्ष रविन्द्र सिंह शाहाबादी ने कही। उन्होंने आगे कहा कि देश के नेताओं की लगातार पूंजी में वृद्धि हो रही हैं। आज देश का बड़ा नेता हो या छोटा नेता सभी पूंजीपति हैं। क्योंकि राजनीति अब राजनीति और समाजसेवा रहा नहीं, राजनीति का भ्रष्टाचार के साथ व्यसायिकरण हो चुका हैं। देश लगातार कई समस्याओं जूझ रहा हैं। पर सभी समस्याओं का मुख्य जड़ यह भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था बन चुकी हैं।
    देश के राजनेताओं ने देश की आम जनता के साथ छल किया हैं। संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण के समय ही अपने यानी नेताओं के पक्ष में विशेष नियम बनाए, जो आम जनता के लिए अलग और नेताओं के लिए अलग हैं, आज वहीं दोहरी नीति आज राजनीति का व्यवसायिकरण करते हुए भ्रष्टाचार का मुख्य जननी व संरक्षक बन गया है। ऐसे दोहरी नियमों को बदलना होगा, पर सदन में जाने वाले नेता बदल नहीं पायेंगे। इस नियमों से उसी राजनेताओं का पोषण और संरक्षण होता हैं। हां देश की आम जनता क्रांति द्वारा इस दोहरी और राजनेताओं की इस विशेष नियमों को बदल सकती हैं।
    राजनेताओं द्वारा बनाई गई राजनेताओं के लिए दोहरी नीति का कुछ उदाहरण....

    1. राजनीति में शिक्षा की अनिवार्यता नहीं। जबकि एक चपरासी की पद के लिए भी शिक्षा की अनिवार्यता हैं।

    2. सांसद, विधायक, मंत्री रहते हुए भी चुनाव लड़ना, क्योंकि मासिक वेतन और पेंशन मिलने के बाद भी सांसद, विधायक, मंत्री लाभ का पद नहीं है। जबकि एक चपरासी की नौकरी भी लाभ का पद हैं।

    3. हारे हुए नेताओं को एडजस्ट करने के लिए विधान परिषद की व्यवस्था। जबकि सभी राज्यों में विधानपरिषद नहीं है बल्कि सिर्फ सात राज्यों में ही विधानपरिषद हैं। यानी बिना विधानपरिषद के भी शासन चल सकता है जैसे बाकि के अन्य राज्यों में चलता हैं। फिर इन सात राज्यों में विधान परिषद क्यों ? क्या यह जनता पर बोझ नहीं हैं।

    4. जनता को राईट टू रिकॉल का अधिकार नहीं देना। जब प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री पर राईट टू रिकॉल लागू हैं तो सांसद और विधायकों पर क्यों नहीं।

    5. राजनीत में झुठा प्रल़ोभन देकर सत्ता प्राप्त करने के बाद वादे से मुकर जाने पर कोई पाबंदी नहीं। ऐसी ही आम जनता करें तो धारा 420 का मुजरिम होती है।

    6. गरीब भारत में सांसद विधायकों को वेतन के रूप में बड़ी राशि और सेवा निवृत्त के बाद आजिवन पेंशन। जबकि अधिकांश नौकरीयों से पेंशन खत्म हो चुकी हैं। और तो और एक साथ दो दो पेंशन का भी व्यवस्था।

    7. आप दो जगहों पर मतदान नहीं कर सकते पर राजनेता दो जगहों से चुनाव लड़ सकते हैं।

    8. जेल में बंद विचाराधीन कैदी मतदान नहीं कर सकते पर राजनेता जेल में बंद होने पर भी एक नहीं दो दो जगहों से चुनाव लड़ सकते हैं।

    9. जब कोई नागरिक दूसरे क्षेत्र से मतदान नहीं कर सकता तो कोई दूसरे क्षेत्र से चुनाव लड़कर उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकता हैं। क्या उस क्षेत्र का नागरिक अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

    10. देश के सांसद, विधायक व मंत्रियों को शिक्षा रहित होने पर भी देश के आईएएस और आईपीएस अधिकारियों से ज्यादा वेतन और पेंशन की राशि क्यों।

    11. सांसद विधायकों को राज्य देश की राजधानी में बड़ा बड़ा मुफ्त बंगला क्यों। उन्हें तो जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना है उस क्षेत्र में रहना चाहिए ताकि उस क्षेत्र की जनता का कार्य कराएं। हा सदन चलने के समय राजधानी में जरूरत हैं जहां वो दो चार दिन के लिए किराए पर भी ठहर सकते हैं।

    12. अपने ही क्षेत्र की जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि को अपने जनता पर भरोसा नहीं, जिससे लाखों रूपये महीना सुरक्षा पर खर्च। जबकि उसी जनता की सुरक्षा भगवान भरोसे।

    इसके अलावा भी अन्य खामीयां हैं।

    साथियों देश की सारी समस्याओं की मुख्य वजह देश की भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था ही हैं, चाहे वो समस्या देश की अंदर की हो या बाहर की हो। चाहे वो समस्या कश्मीर या पाकिस्तान की हो या लेह लद्दाख या चीन की हो।
    चाहे वो समस्या भ्रष्टाचार, गरीबी,बेरोजगारी, अशिक्षा भुखमरी, कुपोषण की हो या आरक्षण, असमानता, धार्मिक या जातिगत कट्टरता की हो।
    सभी समस्याओं की गहराई तक जाने पर यही महसूस होता है की सभी समस्याओं की मुख्य वजह भ्रष्ट, तानाशाही, सत्तालोलुप राजनीतिक व्यवस्था ही है।
    सभी राजनीतिक दल के एजेंडा मे सिर्फ व सिर्फ सत्ता ही अहम हैं। सत्ता के सिवा देश व देशवासी कदापि नहीं। हा सत्ता पाने के लिए सत्ता की रास्ते में जो कुछ कहना व करना पड़े वो सब ये राजनेता व राजनितिक दल ये करेंगे।
    साथियों इन सभी भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था को बदले बिना देश की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। आप सभी सोचकर विचार करे कि क्या हमारे देश के अनेकों शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने इसी भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के लिए अपना बलिदान किए थे। क्या उनके सपनों को साकार करना हमारा धर्म व कर्तव्य नहीं हैं। क्या इस भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था को खत्म कराने के किए हम लोग को एक क्रांति नहीं करनी चाहिए।

    साथियों, हम सभी साथ आए, हम जनता हैं हमारी भी शक्ति हैं,और जनशक्ति के सामने बड़े बड़े सम्राट भी झुकते हैं। जनशक्ति के द्वारा क्रांति करके राजनेताओं को पोषण और संरक्षण देने वाले देश की इस दोहरी नीति को बदल कर हम देश व देशवासियों के अनेकों समस्याओं को खत्म करके देश और देशवासियों की दशा, दिशा बदल कर फिर से देश को सोने की चिड़िया बना सकते हैं और देशवासियों को खुशहाल कर सकते हैं।