Nalini Mishra
*भगवान राम के आदर्श आपके जीवन को सुशोभित करे व आपका जीवन राममय बने*।
*रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ*।
संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
मनोज जैन
दुनियां का सबसे छोटा संविधान अमेरिका का है
केवल 13 पन्नों का
उससे भी छोटा संविधान योगी जी का है केवल दो लाइन का
कायदे में रहोगे तो ही फायदे में रहोगे
Anupama Jain
(owner)
ये तो.,
महोब्बत मजबूर करती हैं ....!!#
वरना.....
कोई पुण्य नही मिलता.,
तुझे याद करने से.....!!#
पायल शर्मा
यह चमत्कार से कम नहीं है..एक बार फिर साबित हुआ...डॉक्टर भगवान जी के ही स्वरूप होते है..❤️
शशि यादव
क्या आप लोग वक्फ बोर्ड को हटाने का समर्थन करते हैं
Sanjay khambete
हमेशा गांधी की हत्या पर चर्चा सुनते आ रहे है सुभाषचंद्र बोस लालबहादुर शास्त्री चंद्रशेखर आजाद जी कई क्रांतिकारी पर चर्चा नहीं सुनी
Mukesh Bansal
बात 2010 के आसपास की है तब शायद $1 में लगभग 43₹ आते थे तब मैंने एक पोस्ट लिखी थी कि भविष्य में अगर ₹1 में 43 डॉलर आएंगे तो आपको कैसा लगेगा।
वह पोस्ट मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसी थी।
तब से अब तक $1 बढ़ते बढ़ते 88 रुपए का हो गया है लेकिन मैं आज भी यही सोचता हूं कि ऐसा समय जरूर आएगा जब ₹1 में एक से ज्यादा डालर मिलेंगे।
मतलब की डालर का 88 गुना से भी ज्यादा अवमूल्यन। देखा जाए तो यह 2010 में मेरे द्वारा देखे गए सपने से भी बड़ा मुंगेरीलाल का हसीन सपना है।
लेकिन अब वैश्विक पटल पर एक तरफ तो इस तरह के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि डॉलर का वर्चस्व धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा और दूसरी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर रुपए की पकड़ मजबूत होनी भी शुरू हो गई है।
भारत का ग्रेट प्रोजेक्ट आफ अंडमान निकोबार भी शुरू होने वाला है जिससे सामरिक दृष्टि से हिंद महासागर में भारत के वर्चस्व के अलावा 12 लाख करोड रुपए की सालाना बचत होनी भी शुरू हो जाएगी। ऐसे में इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से आत्मनिर्भर भी हो जाएगी।
ऐसा मेरे मानने का कारण यह भी है कि विश्व के 40 से भी ज्यादा देश पहले से ही भारतीय रुपए पर अपना भरोसा जता चुके हैं तो भविष्य में रुपए का मजबूत होना भी अवश्यंभावी है।
सनद रहे कि भारत पर अमेरिका द्वारा पूर्ण दबाव बनाने के बावजूद भारत का एक्सपोर्ट पिछले सप्ताह में 35000 करोड रुपए से भी ज्यादा बड़ा है।
लोगों में यह आशंका हो सकती है कि अभी तो रुपए की कीमत धड़ाधड़ कम हो रही है।
लेकिन दोस्तों रुपए की कीमत कम होने से हमारे आत्म निर्भर बनने की स्पीड बहुत ज्यादा बढ़ जाती है रुपए की कीमत कम होने से हमारा एक्सपोर्ट सस्ता हो जाता है और विदेशों से मंगवाये जाने वाला सामान मेंहगा। क्योंकि विदेशों से मंगवाये जाने वाला सामान महंगा होता है अतः उस सामान को भारत में बनाने की इकाइयां स्थापित होनी शुरू हो जातीं हैं जिससे भारत की आत्म निर्भरता बढ़ जाती है। शायद इसीलिए हमारा नेतृत्व रुपए की कीमत बढ़ने नहीं दे रहा।
वैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में किस देश की कौन सी हरकत पूरी स्थिति को कब और क्यों बदल दे यह तो सिर्फ भगवान ही जानता है।
अनिल जैन
रिश्ते खून से नहीं, बल्कि भरोसे से बनते है और भरोसा वहां टूटता है, जहां अहमियत कम हो जाती है..