Nalini Mishra
*भगवान राम के आदर्श आपके जीवन को सुशोभित करे व आपका जीवन राममय बने*।
*रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ*।
संजीव जैन
"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है!!
नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!
सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है!!\ud83d\udc9e
" गाँव "
Mukesh Bansal
अमेरिका -एक किताबी देश जो विश्व को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है।
युरोपियन यूनियन और ब्रिटेन - किताबी देशों का समूह जो स्वयम् विश्व को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है।
इज़रायल- एक किताबी जो स्वयम् को सर्वश्रेष्ठ समझता है।
सऊदी और तुर्की - सुन्नी किताबी जो स्वयम् को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं।
ईरान , हिज़बुल्ला, हाऊती इराक़ के शिया जो स्वयम् को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं।
अमेरिका, युरोपियन यूनियन और ब्रिटेन के प्रथम शत्रु रूस है, दूसरा चीन और तीसरा भारत।
अमेरिका और युरोप विश्व को कैसे नियंत्रित करते हैं ?
शासन परिवर्तन के द्वारा । जी यह, शासन परिवर्तन इनके लिये रूस, चीन और ईरान में कठिन होता जा रहा है।
सुन्नी सऊदी इनका सहयोगी है और सुन्नी तुर्की नेटो का सदस्य और ये दोनों भी ईरान तथा शिया समुदाय का नाश चाहते हैं।
भारत में सत्ता परिवर्तन के लिये गौरांग बाबा के रूप में सोरस एंड कंपनी लगी ही हुयी है।
इस्राइल का भी वास्तविक उद्देश्य केवल परमाणु संकट का समाधान नहीं है, अपितु उससे कहीं अधिक गम्भीर है।
यदि अमेरिका पुनः ईरान पर अधिकार स्थापित कर लेता है (जैसे 1979 से पूर्व था), तो वह रूस की दक्षिणी सीमा को अवरुद्ध कर देगा। इसका तात्पर्य यह होगा कि रूस की शक्ति कैस्पियन सागर से आगे नहीं बढ़ सकेगी, तथा वह मध्य एशिया और आर्कटिक के मध्य एक संकीर्ण भूभाग तक सीमित हो जाएगा।”
वे यह भी चेतावनी देते हैं कि एक दुर्बल ईरान से चीन को भी हानि होगी। “यदि ईरान पश्चिमी गुट में सम्मिलित हो जाता है, तो चीन की पश्चिम एशिया तक की पहुँच समाप्त हो जाएगी। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि एक नयी विश्व व्यवस्था आरम्भ होगी—एक अमेरिकी प्रधान विश्व व्यवस्था।”
यह कोई क्षेत्रीय संघर्ष नहीं है, अपितु एक व्यापक रणनीति का अंग है जिसका उद्देश्य अमेरिकी प्रभुत्व की पुनः स्थापना है।
“अमेरिका को पुनः महान बनाना अर्थात् सम्पूर्ण विश्व में उसका नियंत्रण पुनः स्थापित करना। ईरान का युद्ध उसी योजना का एक अध्याय है।”
ट्रम्प का रणनीतिक मौन
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब तक इस्राइली अभियान से स्वयं को पृथक बताते रहे हैं, यह कहकर कि अमेरिकी उद्देश्य केवल रक्षात्मक हैं, और उन्होंने यह वचन दिया है कि वे कोई युद्ध प्रारम्भ नहीं करेंगे।
पश्चिमी लोगों के साथ काम करते हुये मैंने यह समझ लिया है कि रणनीति में, यदि युद्ध करना हो, तो शांति की बात कीजिए।
मुझे लगता है कि #अमेरिका एक अत्यन्त #व्यापक_युद्ध की तैयारी कर रहा है—प्रथम चीन के विरुद्ध, तत्पश्चात रूस के विरुद्ध। इसके पश्चात वे ‘अमेरिकी शताब्दी’ की स्थापना का प्रयास करेंगे। एक वैश्विक शासन, जिसका केन्द्र व्हाइट हाउस होगा—यही उनका अंतिम लक्ष्य है ।
एक जुआ
ईरान में बलपूर्वक शासन परिवर्तन से वही स्थिति पैदा हो सकती है जैसे कि इराक़ और लीबिया में हुयी, पर सुन्नी समुदाय भी अब यही चाहता है ।
तेहरान की वर्तमान शासन-व्यवस्था का पतन एक बहु-जातीय राष्ट्र को विभाजन की ओर ले जा सकता है—कुर्द, अज़ेरी, अरब, एवं बलूच समुदायों में स्वायत्तता अथवा स्वतंत्रता की मांग उत्पन्न होगी । पाकिस्तान भी टूटेगा फिर ।
ईरान के हिज़्बुल्लाह (लेबनान), हूथी (यमन), एवं विभिन्न शिया मिलिशियाओं (इराक़ व सीरिया) से गठबन्धन का अर्थ है कि तेहरान में सत्ता का पतन सम्पूर्ण पश्चिम एशिया में हिंसा की श्रृंखला को जन्म दे सकता है। वैश्विक तेल बाज़ार, जो पहले से ही अस्थिर हैं, ऐतिहासिक स्तर पर बाधित हो सकते हैं।
ईरान-इराक़ युद्ध का उद्देश्य भी यही था—खुमैनी द्वारा स्थापित इस्लामी गणराज्य को नष्ट करना। परन्तु आठ वर्षों के युद्ध, अरबों डॉलर के व्यय, और अमेरिका, फ्रांस व खाड़ी देशों के समर्थन के बावजूद, ईरान बचा रहा।
जब इस्राइल अपने अभियान को जारी रखता है और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय सशंकित दृष्टि से देख रहा है, तब #यह_संघर्ष केवल एक #क्षेत्रीय_टकराव_न_रहकर_21वीं_शताब्दी की वैश्विक शक्ति-संतुलन का निर्धारण करने वाला बन सकता है।
तो, मेरी समझ के अनुसार ईरान का सत्ता परिवर्तन मुख्य उद्देश्य है। ताकि रूस और चीन को घेरा जा सके । मोदी को दुर्बल करने के लिये तो हम मूर्ख हिन्दू ही पर्याप्त हैं।
नमस्कार
अनिल जैन
रिश्ते खून से नहीं, बल्कि भरोसे से बनते है और भरोसा वहां टूटता है, जहां अहमियत कम हो जाती है..
Priyadarshi Tiwari
सभी के असली चेहरे न दिखा ऐ जिंदगी
कुछ लोगों कि हम इज्जत करते है